मापन का अर्थ, तत्व, प्रकार, कार्य......
मापन (Measurement)
मनुष्य के सभ्यता के विकास में जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति हुई मापन विधियों का भी उत्तरोत्तर विकास होता गया प्रारंभ में लगभग सभी क्षेत्रों में प्रयत्न एवं भूल विधि का ही सहारा लिया जाता था पर कालांतर में अनुभव के अलग-अलग हिस्सों को जमा कर ज्ञान की दर्शन शास्त्र शाखा का जन्म हुआ लगभग तीन शताब्दियों पूर्व जब गैलीलियो ने प्रयोगात्मक विधि के नियमों की सत्यता व शुद्धता की जांच की तो आधुनिक विज्ञान का पादुर्भाव हुआ तब से ना केवल भौतिक एवं रासायनिक क्षेत्र में बल्कि मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, समाजशास्त्र, जीव शास्त्र आदि सभी विषयों में मानव ने बहुत हद तक प्रभावित किया है मनोविज्ञान तथा शिक्षा के अंतर्गत मानव के विभिन्न विवादों का अध्ययन किया जाता है इस कार्य के लिए मानव व्यवहार का मापन करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है यदि साधारण शब्दों में कहें तो मापन के द्वारा किसी तथ्य के विभिन्न आयामों को अंक प्रदान करना ही मापन है
मापन का अर्थ (Meaning of Measurement)
प्राय: मापन से अर्थ यह लगाया जाता है कि मापन प्रदत्तों का अंको के रूप में वर्णन करता है मापन किसी वस्तु का शुद्ध, वस्तुनिष्ठ रूप से वर्णन करता है। किसी भौतिक वस्तु के गुण व विशेषताओं का परिणाम अंकात्मक रूप देने की क्रिया को मापन किया कहते हैं। कई प्रमुख विद्वानों ने मापन को अपने तरह से परिभाषित किया है जिनमें से कुछ प्रमुख पररभायाएँ नीचे दी जा रही है
एम.एस. स्टीवेंस के अनुसार मापन किन्ही निश्चित नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है
(Measurement is the process of assigning numbers to objects according to certain agreed rules)
ब्रेडफील्ड तथा मोरडॉक के अनुसार मापन के द्वारा किसी तत्व तथ्य के विभिन्न आयामों को प्रतीक प्रदान करना ही मापन कहलाता है
(Measurement is the process of assigning symbols to dimensions of phenomena in order to characterize the status of phenomena as precisely as possible.)
हैल्मस्टेडर के अनुसार मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें किसी व्यक्ति या पदार्थ को निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है
(Measurement has been defined as the process of obtaining a numerical description of the extent to which a person or thing possesses some characteristic.)
ई. ए. पील के अनुसार मापन का उद्देश्य व्यक्ति को एक सतलित व्यक्तित्व प्रदान करना है ताकि वह समाज द्वारा प्रदत्त उत्तरदायित्व का निर्वाह बखूबी कर सके
(Its purpose is to promote the development of a well integrated person, capable of exercising such responsibility in society as in power allowed.)
यदि साधारण शब्दों में कहा जाए तो मापन विभिन्न निरीक्षणो, वस्तुओं व घटनाओं को कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार सार्थक व संगत रूप से संकेत चिन्ह या आंकिक संकेत प्रदान करने की प्रक्रिया है
उपरोक्त विवरण के अनुसार यह कहा जा सकता है कि मापन के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं जो निम्नलिखित है
- यह वस्तुओं की श्रेणी व्यक्त करता है
- यह संख्याओं की श्रेणी को व्यक्त करता है
- यह वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाले नियमों को व्यक्त करता है
मापन के आवश्यक तत्व( Essential elements of measurement)
मूल्यतः मापन प्रक्रिया के तीन चरण है
- गुणों को पहचानना
- गुणों को अभिव्यक्त करने वाले सक्रिय विन्यास को निश्चित करना
- गुणों को अंशो या युगों की इकाइयों में मात्रांकित करना
1. गुणों को पहचानना( Identifying and defining the traits)-
किसी भी व्यक्ति या वस्तु के मापन से पूर्व सर्वप्रथम उसके गुणों को पहचान लिया पहचान कर उनकी व्याख्या की जाती है क्योंकि मापन के अंतर्गत व्यक्ति या वस्तु के संपूर्ण व्यवहार का अध्ययन करके उसके केवल कुछ ही गुणों का मापन किया जाता है जैसे मेज या कमरे की लंबाई, शरीर का तापक्रम, बालक की बुद्धि एवं सृजनात्मकता किशोर की संवेगात्मक परिपक्वता रुचि आदि
2. गुणों को अभिव्यक्त करने वाले सक्रिय विन्यास को निश्चित करनाकरना(Determining set of operations by which traits may be expressed):
मापन के दूसरे चरण में उन सक्रिय विद्यालयों को निश्चित करना जिनके माध्यम से मापनकर्ता उन गुणों को अभिव्यक्त कर सके जैसे लंबाई मापन हेतु मीटर और टेप का प्रयोग करते हैं परंतु कुछ लंबाई एवं दूरी का मापन इतना सरल नहीं होता जैसे पृथ्वी की सूरज से दूरी या फिर भारत से अमेरिका की दूरी
3. गुणों को अंशो या योग की इकाइयों में मात्रांकिक करना( To quantify the traits in the units of parts or sum) :
मापन के तीसरे चरण में संक्रियाओं के निष्कर्षों को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करते हैं मापन में हमारा संबंध अधिकांश रूप में इन प्रश्नों- कितने तथा कितना में रहता है
मापन के प्रकार (Types of Measurement)
मनोवैज्ञानिक मापन के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं
मानसिक मापन या गुणात्मक मापन
भौतिक मापन या मात्रात्मक मापन
1. मानसिक मापन या गुणात्मक मापन (Mental or Qualitative Measurement)
मानसिक मापन का प्रारंभ बुद्धि के मापन के लिए अल्फ्रेड बने के द्वारा बुद्धि परीक्षण के लिए परीक्षण बनाकर व मानसिक मापन की प्रकृति सापेक्षिक का प्रकार की होती है मानसिंह में अंगों का स्वयं कोई अस्तित्व नहीं होता जैसे यदि मानसिक मापन के अंतर्गत हम या कहें कि राम ने किसी बुद्धि परीक्षण में 50 अंक प्राप्त किए हैं तब इसके द्वारा किसी वास्तविक तथ्य की सूचना प्राप्त नहीं होती क्योंकि इस 50 अंक में स्वयं अपना कोई अस्तित्व नहीं है मानसिक मापन में कोई निश्चितता नहीं होती मानसिक मापन परिवर्तनीय होते हैं मानसिक मापन वस्तु के किसी आंशिक गुण के मात्रा से ही संबंधित होते हैं मानसिक मापन का प्रयोग मुख्य रूप से बुद्धि अभिक्षमता, उपलब्धि, रुचि योग्यता आदि के मापन में किया जाता है
2. भौतिक मापन या मात्रात्मक मापन( Physical or Quantitative Measurement):
भौतिक मापन का आरंभ प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में किए गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप हुआ भौतिक मापन की प्रकृति निरपेक्ष होती है इतना ही नहीं बौद्धिक मापन निश्चित होता है इस शून्य बिंदु होता है भौतिक मापनों की व्याख्या मानसिक मापनों की अपेक्षा सरल होती है इसमें संपूर्णता एवं वस्तुनिष्ठता पाई जाती है भौतिक मापन स्थिर होते हैं
मानसिक मापन तथा भौतिक मापन में अंतर (Difference between mental measurement and physical measurement)
- मानसिक मापन के अंतर्गत विभिन्न मानसिक क्रियाओं एवं शील गुणों का मापन होता है जबकि भौतिक मापन के अंतर्गत भौतिक गुणों का मापन होता है
- मानसिक मापन की प्रकृति सापेक्षिक प्रकार की होती है जबकि भौतिक मापन की प्रकृति निरपेक्ष प्रकार की होती है
- मानसिक मापन में अंको का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता है जबकि भौतिक मापन में अंक महत्वपूर्ण होते हैं
- मानसिक मापन में कोई यदाची शून्य नहीं होता है जबकि भौतिक मापन में शून्य बिंदु होता है
- मानसिक मापन भौतिक मापन की अपेक्षा अधिक परिवर्तनीय होते है जबकि भौतिक मापन स्थिर होता है
- मानसिक मापन में आत्मनिष्ठता पाई जाती है जबकि भौतिक मापन में वस्तुनिष्ठता पाई जाती है
- मानसिक मापन वस्तु के किसी आंशिक गुण के मापन से संबंधित होता है जबकि भौतिक मापन में संपूर्णता पाई जाती है
मापन के कार्य (Functions of Measurement )
मूलतः प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में भिन्न प्रकृति का होता है व्यक्ति विशेष की अपनी विशेष योग्यता होती है इस प्रकार के वैयक्तिक विभिन्नताओं का ज्ञान प्राप्त करने का एकमात्र साधन मापन ही है मापन के निम्न मुख्य कार्य है
- वर्गीकरण
- पूर्वकथन
- तुलना
- परामर्श एवं निर्देशन
- निदान
- अन्वेषण
1.वर्गीकरण (Classification):
पूरी दुनिया में कोई भी दो व्यक्ति एक समान नहीं है वह न केवल शरीर बल्कि मानसिक दृष्टिकोण से एक दूसरे से भिन्न होते हैं शोध से यह निष्कर्ष निकला है कि प्रत्येक व्यक्ति क्षमता रुचि एवं व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों की दृष्टि से भिन्न होते हैं मापन एक प्रमुख कार्य विभिन्न आधार पर वर्गीकरण करना है
2. पूर्व कथन (Prediction):
पूर्व कथन से हमारा तात्पर्य व्यक्ति की वर्तमान योग्यताओं के आधार पर भविष्य के बारे में घोषणा करना है मनोविज्ञान में पूर्व कथन करने की विशेष आवश्यकता पड़ती है बहुत से बुद्धि परीक्षणों के आधार पर हम लोग किसी भी व्यक्ति विशेष के संबंध में निर्णय लेते हैं
3. तुलना (Comparison):
तुलना मापन का एक अति महत्वपूर्ण कार्य है प्रत्येक परीक्षा का उद्देश्य होता है कि उसके परिणामों के आधार पर दो व्यक्तियों, दो कक्षाओं व दो अध्ययन प्रणालियों की तुलना की जा सके प्रमापीकृत परीक्षाओं के आधार पर जिनके मानक पहले से ही तय किए होते हैं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की तुलना आपस में आसानी से की जा सकती है
4.परामर्श एवं निर्देशन (Guidance and counselling):
मनोवैज्ञानिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में विद्यार्थी में मापन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर शिक्षक ना केवल अपने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता है बल्कि उनको व्यवसायिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है
5. निदान (Diagnosis):
चिकित्सा में चिकित्सक निदान अनेक प्रकार के उपकरणों जैसे- थर्मामीटर, एक्स-रे आदि की सहायता से करता है लेकिन मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह विभिन्न प्रकार के उपकरणों जैसे- बुद्धि लब्धि परीक्षण, रुचि परीक्षण इत्यादि के माध्यम से करता है
6. अन्वेषण (Research):
कोई भी मनोवैज्ञानिक अनुसंधान मापन का प्रयोग किए बिना अधूरा है मनोविज्ञान के क्षेत्र में भूत से शोध कार्य में मापन उपकरणों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार भौतिक विज्ञान में शोध के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनोविज्ञान में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता होती है
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