अभिक्रमित अनुदेशन अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, सिद्धांत, सीमाएं, प्रकार
अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ (Meaning of programmed learning or Instruction)
अभिक्रमित अनुदेशन शैक्षिक सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर उसे इस प्रकार श्रंखलाबद्ध करने की प्रक्रिया है जिसके सहारे अधिगमकर्ता जहां तक जानता है या ज्ञान होता है उसके आगे के अज्ञान एवं नवीन ज्ञान को स्वयं सीख सकें दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण अधिगम की एक विधि है जिसमें अधिगम के स्रोत, साधनों एवं सामग्री को नियोजित और संगठित करने का प्रयास इस प्रकार किया जाता है जिससे अधिगमकर्ता शिक्षण के सुनिश्चित उद्देश्यों तक पहुंच जाए
परिभाषाएं(Definitions)
स्टोफल के अनुसार- ज्ञान के छोटे-छोटे अंशों को एक तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने को अभिक्रम तथा इसकी संपूर्ण प्रक्रिया को अभिक्रमित अध्ययन कहा जाता है
कुक डी. एल. के अनुसार- अभिक्रमित अधिगम शिक्षण विधियों के व्यापक संप्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त एक प्रत्यय है
स्मिथ तथा मुरे के अनुसार- अभिक्रमित अनुदेशन किसी अधिगम सामग्री को क्रमिक पदों की श्रंखला में व्यवस्थित करने की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्रों को उनकी परिचित पृष्ठभूमि से एक नवीन है तथा जटिल प्रत्ययों, सिद्धांतों तथा अवबोधों की ओर ले जाया जाता है
जेम्स ई. एस्पिच (J. E. Aspech) और विलियम्स (B.Williams) के अनुसार- अभिक्रमित अनुदेशन अनुभवों का वह नियोजित क्रम है जो उद्दीपन अनुक्रिया संबंध के रूप में कुशलता तथा सक्षमता की ओर ले जाता है
विशेषताएं(Qualities)
- शिक्षण व्याख्या के विपरीत अभिक्रमित अनुदेशन विधि के द्वारा छात्रों को तत्काल जांच का अवसर प्राप्त होता है
- इस विधि के द्वारा छात्रों को निरंतर स्व प्रेरणा का अवसर प्राप्त होता है और वह पुनर्बलन प्राप्त करते हुए निरंतर सीखने का अवसर प्राप्त करते हैं
- अभिक्रमित अनुदेशन प्रणाली मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धांत पर आधारित है
- अभिक्रमित अनुदेशन छात्रों की कमजोरियों तथा कठिनाइयों का निदान कर उपचारात्मक अनुदेशन की व्यवस्था करता है
- छात्रों की अनुक्रियाओं के माध्यम से अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री का मूल्यांकन किया जाता है और उसके पश्चात उनमें सुधार तथा परिवर्तन भी किया जाता है
- छात्रों में अनुदेशन सामग्री के अध्ययन के समय अधिक तत्परता तथा जिज्ञासा रहती है जिससे वे विषय-वस्तु जल्दी समझ जाते हैं
- छात्र की प्रत्येक अनुक्रिया उसे नया ज्ञान प्रदान करती है
- अभिक्रमित सामग्री सीखने से अपेक्षाकृत त्रुटियों की दर तथा गलतियों की दर काफी कम रहती है
- अभिक्रमित सामग्री छात्रों के पूर्व व्यवहारों तथा धारणाओं का विशिष्टीकरण किया जाता है
- छात्रों को अपनी गति से विषय वस्तु सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं
- अभिक्रमित सामग्री में प्रत्येक पद अपने आगे वाले पद को तार्किक क्रम में स्वाभाविक रूप से जुड़ा होता है
- अभिक्रमित सामग्री छोटे-छोटे अंशों में श्रृंखलाबद्ध किया जाता है
- अभिक्रमित सामग्री व्यक्तिनिष्ठ होती है और इसमें एक समय में केवल एक ही व्यक्ति सीखता है
अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांत (Principles of Programmed Instruction or Learning)
1.लघु पदों अथवा छोटे पदों का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार सिखाई जाने वाली सामग्री को छोटे-छोटे टुकड़ों में इस प्रकार क्रमिक रूप से विभाजित किया जाता है कि आगे वाला पद पिछले वाले पद से संबंधित रहता है
2.पृष्ठपोषण का सिद्धांत या तुरंत जांच का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार जब छात्र किसी अभिक्रमित अध्ययन सामग्री में किसी दिए किसी प्रश्न का उत्तर सही या गलत है इसकी जानकारी उसे तुरंत दे दी जाती है उत्तर सही होने की स्थिति में वह अगले पद की ओर अग्रसर होता है यदि उसके द्वारा दिया गया उत्तर गलत है तो उसे सही उत्तर देने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है इस संपूर्ण प्रक्रिया में पृष्ठपोषण तुरंत प्राप्त होता है और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है
3.सक्रिय अनुक्रिया का सिद्धांत- इस सिद्धांत में अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की सक्रिय सहभागिता बनी रहती है छात्र पहले अधिगम प्राप्त करता है फिर उसका तत्काल मूल्यांकन करता है उत्तर सही होने पर आगे बढ़ता है और गलत होने पर सही करने के लिए निर्देश दिए जाते हैं अभिक्रमित अध्ययन छात्र को शिक्षण के दौरान में सतत एवं सक्रिय रहने हेतु विवश रहता है
4.स्वगति सिद्धांत- अभिक्रमित अध्ययन छात्र को इस बात पर पूर्ण अवसर प्रदान करता है कि वह स्वयं अपनी बातों के अनुसार शिक्षण सामग्री पर कार्य कर सकें उसे कक्षा के अन्य छात्रों के साथ चलने पर मजबूर नहीं किया जाता इस प्रकार यह छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखता है
5. स्व-परीक्षण सिद्धांत- अभिक्रमित अध्ययन इस बात पर बल देता है कि छात्रों की कमजोरियों एवं त्रुटियों के निरंतर एवं सही समय पर जांच होती रहे इसमें छात्र अपने अधिगम का मूल्यांकन परीक्षण स्वयं करें सकता है
6.पुनर्बलन का सिद्धांत- इस सिद्धांत में छात्रों को पुनर्बलन मशीन द्वारा दिए गए मूल्यांकन के उत्तरों के सही होने पर प्राप्त होता है इस विधि में प्राय: सकारात्मक व धनात्मक पुनर्बलन प्राप्त होता है इस प्रकार पुनर्बलन से प्रेरित होकर छात्र अधिगम की दिशा में स्वाभाविक गति से आगे बढ़ने को प्रोत्साहन मिलता है
सीमाएं/दोष(limitations)-
- अभिक्रमित अनुदेशन में केवल पढ़ने और बोध शक्ति के विकास को ही अवसर मिलता है भाषा शिक्षण के अन्य कौशल जैसे- सुनना, बोलना, लिखना, चिंतन मनन शक्ति आदि के विकास संबंधी पक्ष उपेक्षित रह जातें हैं
- जो विद्यार्थी लापरवाह प्रवृत्ति के होते हैं यदि उन पर अध्यापक बराबर नियंत्रण न हो तो वे और भी लापरवाह हो जाते हैं और धीरे-धीरे शिक्षा में उनकी अरुचि हो जाती है
- यह तकनीकी अनुदेशात्मक उद्देश्यों में से ज्ञानात्मक उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकती है परंतु भावनात्मक व कौशलात्मक उद्देश्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देती
- यदि अभिक्रम के आरंभ में ही छात्र की अनुक्रिया गलत होने लगती है तो छात्र में रुचि और अभिप्रेरणा कम हो जाती है उसे पुनर्बलन से भी नहीं बढ़ाया जा सकता
- अभिक्रमित अनुदेशन के अनुसार आगे बढ़ने के प्रयास में व्यस्त रहता है परिणाम स्वरूप कक्षा में सामाजिकता की भावना का अभाव हो जाता है
- अभिक्रमित अनुदेशन का प्रयोग हर विषय के लिए किया जाना असंभव है क्योंकि सभी विषयों व उनसे संबंधित प्रकरणों का अभिक्रम का निर्माण किया जाना मुश्किल है
- कंप्यूटर मशीन द्वारा शिक्षण होने से कक्षा में जो एक भावनात्मक वातावरण बनता है उसका अभाव होता है शिक्षा अपने व्यक्तित्व से होने अनेक बातों के लिए छात्रों को प्रभावित करता है इसमें प्रभाव का अभाव रहता है
- अभिक्रमित अनुदेशन को व्यक्तिक अनुदेशन की एक तकनीकी माना गया है परंतु वास्तव में यह बात ठीक नहीं हर छात्र को अधिगम में अपनी अपनी गति से तो आगे बढ़ना होता है परंतु अधिगम की सामग्री तो हर छात्र के लिए एक सी ही होती है सभी छात्रों को एक से तरीके से सिखाना होता है और अधिगम अनुदेशन में बताए हुए एक से रास्ते से ही आगे बढ़ना होता है
- अभिक्रमित अनुदेशन, अनुदेशन प्रक्रिया की स्वाभाविकता को समाप्त कर उसे यांत्रिक प्रक्रिया बना देती है विद्यार्थी, विद्यार्थी ना रहकर मशीन के पुर्जे बन जाते हैं
अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार(Types of Programming)
- रेखीय अथवा बाह्य अभिक्रमित अध्ययन (Linear or Extrinsic programming)
- शाखीय अथवा आंतरिक अभिक्रमित अध्ययन (Branching or Intrinsic Programming)
- मैथेटिक्स या अवरोही अभिक्रमित अध्ययन (Mathetics Programming)
- नियम उदाहरण अभिक्रमित अध्ययन (Rule System of Programming)
- कंप्यूटर सा-अनुदेशन अभिक्रमित अध्ययन (Computer Assisted Programming)
- अधिगमकर्ता नियंत्रित अभिक्रमित अध्ययन (Leaner Controller Instructions)
1.रेखीय अभिक्रमण अथवा बाह्य अभिक्रमण (LINEAR PROGRAMMING OR EXTRINSIC PROGRAMMING)-
1. एक समय में विषय-वस्तु का छोटा-सा अंश ही छात्रों के सामने प्रस्तुत किया जाता है।
2. छात्र अनुक्रिया करके उत्तर देते हैं।
3. छात्र अपने उत्तर को सही उत्तर से मिलान करके पुनर्बलन करता है।
4. उसे आगे क्या करना है- यह निर्देश प्राप्त होता है।
रेखीय अभिक्रमण की विशेषताएँ (Characteristics of Linear Programming)-
इसकी प्रमुख विशेषताएँ नीचे दी जा रही है
1. एक रेखीय मार्ग-इसमें छात्र क्रमबद्ध रूप में विभिन्न छोटे-छोटे पदों के माध्यम से एक रेखीय मार्ग पर गति करते हुए अन्तिम व्यवहार तक पहुँचता है।
2. प्रतिपोषण-इसमें छात्र की अनुक्रिया की जाँच कर सही अनुक्रिया के लिए पृष्ठपोषण की व्यवस्था होती है।
3. एक समान पथ-सभी छात्रों के लिए समान पथ होता है, जिस पर चलकर अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचते हैं।
4. उद्बोधों का प्रयोग-इसमें शुरू में अधिगम को सरल बनाने के लिए उद्बोधों (Prompts) या संकेतों (Cues) का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें बाद में धीरे-धीरे हटा दिया जाता है।
5. नियन्त्रित अनुक्रिया-अनुक्रिया तथा उसके क्रम पर नियन्त्रण रखा जाता है।
6. छात्र-त्रुटि की बहुत कम सम्भावना- इस अभिक्रमण में शिक्षण सामग्री का निर्माण तथा प्रस्तुतीकरण इस प्रकार किया जाता है कि छात्र की त्रुटि की सम्भावना लगभग खत्म जाती है।
7. मनोविज्ञान सिद्धान्त आधारित- यह मनोविज्ञान के अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।
8. स्व-अध्ययन - यह स्व अध्ययन के लिए पथ-प्रशस्त करता है जिससे विभिन्न मानसिक स्तरों के छात्रों को अपनी-अपनी गति के अनुसार सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं।
9. स्पष्ट करने की क्षमता- यह अभिक्रमण कठिन सम्प्रत्ययों को सरलता एवं सुगमता से स्पष्ट करने में सक्षम है।
10. सक्रिय छात्र-अधिगम के समय छात्र सक्रिय क्रियाशील तथा तत्पर हो जाते हैं।
11. पुनर्बलन- इसमें छात्र की प्रत्येक सही अनुक्रिया को पुनर्बलित किया जाता है, जिससे अधिगम प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली हो जाती है।
12. प्रभावी विधि-परम्परागत शिक्षण की तुलना में यह विधि ज्यादा प्रभावशाली होती है।
रेखीय अभिक्रमण की सीमाएँ (Limitations of Linear Programming)-
1, छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नता की अवहेलना- इसमें सभी छात्रों के लिए एक ही क्रम दिया होता है। छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
2. उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति में अक्षम-इससे उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है।
3. तथ्यात्मक पाठ्य सामग्री के शिक्षण में कम उपयोगिता- यह तथ्यात्मक पाठ्य-वस्तुओं के शिक्षण में कम उपयोगी है। यह व्याख्यात्मक पाठ्य-वस्तुओं के लिए ही होता है।
4. छात्रों की बन्धित अनुक्रियाएँ- इसमें अधिगम नियन्त्रित परिस्थितियों में होता है अतः छात्रों को अनुक्रियाओं हेतु आजादी नहीं है।
5. सुधारात्मक शिक्षण के लिए निर्माण में कठिनाई- इसका निर्माण करना सरल नहीं है। कई बार प्रशिक्षण लेने के बाद भी अच्छा अभिक्रमण तैयार करना कठिन हो जाता है।
6. उपयोगिता का अभाव-इसके द्वारा सुधारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) सम्भव नहीं है।
7. प्रतिभाशाली छात्रों की कम रुचि- प्रतिभाशाली छात्र इसमें कम रुचि लेते हैं।
8. सृजनात्मकता का अभाव-इस विधि के अनुसार छात्रों की सृजनात्मकता को बढ़ावा नहीं मिल पाता।
2.शाखीय अथवा आन्तरिक प्रोग्रामिंग(BRANCHING OR INTRINISIC PROGRAMMING)
शाखीय प्रोग्रामिंग में कमजोर छात्र की अपेक्षा एक प्रतिमाशाली छात्र अन्तिम व्यवहार तक जल्दी पहुँचता है।
अभिक्रमण की इस शैली में छात्रों की त्रुटियाँ करने की अपेक्षा निदान पर अधिक बल दिया जाता है।
शाखीय अभिक्रमण की विशेषताएँ (Characteristics of Branching Programming)-
इनकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है-
1. शाखीय अभिक्रमण में रखीय अभिक्रमण की तुलना में प्रत्येक पाठ या फ्रेम में अधिक शिक्षण सामग्री आती है।
2. इस अभिक्रमण में छात्रों की आवश्यकतानुसार विभिन्न पदों पर होकर अन्तिम पद तक पहुँचने को स्वतन्त्रता होती है।
3. इस अभिक्रमण में छात्रों के समक्ष बहु-विकल्प वाले प्रश्न दिये जाते हैं।
4. यह अभिक्रम छात्र की सम्भावित त्रुटियों के आधार पर शिक्षण सामग्री के निर्माण पर बल देता है।
5. गलत अनुक्रिया करने पर छात्र को उसे सही करने के लिए अवसर दिया जाता है। वह अगले पद पर तब तक नहीं पहुँचता जब तक वह अपने पहले मुख्य पद का सही उत्तर नहीं दे पाता।
6. इसमें प्रत्येक फ्रेम अति स्पष्ट तथा बड़ा बनाना पड़ता है।
7. यह अभिकरण छात्रों की तार्किक शक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
8. इस अभिक्रम में अधिगमकर्ता की रुचि बराबर बनी रहती है।
9. यह छात्री द्वारा नियन्त्रित अभिक्रमण है।
10. इसमे पृष्ठपोषण तुरन्त देने की व्यवस्था है।
11. यह छात्र केन्द्रित अभिकरण है।
12. यह अभिक्रम परम्परागत ट्यूटोरियल विधि पर आधारित होता है।
13. यह अभिक्रम विभेदीकरण क्षमता, सृजनात्मकता तथा समस्या समाधान योग्यता के विकास में सहायक होता है।
14. इसमें गलतियाँ अधिगम प्रक्रिया में बाधक नहीं बन पार्ती क्योंकि यह अभिक्रम यह मानकर चलता है कि गलतियों से भी सीखा जाता है और गलतियाँ ठीक करने की इसमें व्यवस्थित प्रणाली होती है।
15. इस प्रकार के अभिक्रम द्वारा तैयार सामग्री पुस्तकों तथा शिक्षण मशीनों, दोनों में होती है।
शाखीय अभिक्रम की सीमाएँ (Limitations of Branching Programming)
1. यह छोटी कक्षाओं के लिए कम उपयोगी है।
2. इसमें पूर्ण विषय वस्तु को समाहित करना कठिन हो जाता है।
3. यह अपेक्षाकृत महँगा अभिक्रम है।
4. इस अभिक्रम के निर्माण के लिए कशल प्रशिक्षित एवं योग्य शिक्षकों की जरूरत पड़ती है।
5. इसमें बहु-विकल्प वाले प्रश्नों को करने के लिए अनेक बार, छात्र बिना विषय-वस्तु को बिना समझे बिना पढ़े, केवल अनुमान के आधार पर ही उत्तर दे देते हैं।
6. इसमें हर वर्ष (या निश्चित समयान्तराल के पश्चात) संशोधन की आवश्यकता होती है।
मैथेटिक्स प्रोग्रामिंग (MATHETICS PROGRAMMING)
मैथेटिक्स प्रोग्रामिंग का अर्थ-मैथिटिक्स प्रोग्रामिंग विकसित करने का श्रेय थॉमस एफ गिलबर्ट को है। मैथेटिक्स शब्द यूनानी भाषा के मैथीन' शब्द से निकला है जिसका अर्थ है-सीखना। मैथेटिक्स का तात्पर्य–समूह के जटिल व्यवहार के विश्लेषण एवं पुनर्निर्माण हेतु पुनर्बलन के सिद्धान्तों के उस सुव्यवस्थित प्रयोग से है जो विषय-वस्तु में निपुणता बताती है।
यह विधि यद्यपि थोड़ी जटिल प्रकृति की है, पर यह कठिन कौशलों की प्राप्ति में वांछित व्यवहार लाने में तथा विषय-वस्तु पर पूर्ण अधिकार अर्जित करने में बहुत उपादेय मानी गयी है।
मैथेटिक्स अभिक्रमण में अभिक्रम की यूनिट पद' न होकर अभ्यास' (Exercise) होती है। इसमें पाठ्य-वस्तु को एक कड़ी के रूप में रखा जाता है, जिसमें अन्तिम पद को प्रथम के रूप में प्रस्तुत किया जाता है (अवरोही शृंखला या Retrogressive Chaining)
प्रारम्भ में मैथेटिक्स गणित के क्षेत्र में प्रयुक्त किया गया था. परन्तु अन्य विषयों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
इस अधिक्रम की तीन अवस्थाएँ होती है-
1. प्रदर्शन (Demonstration)
2. अनुबोध (Prompting)
3. उन्मुक्ति (Release)
प्रदर्शन में छात्रों के अधिगम व्यवहार को प्रदर्शित किया जाता है।
अनुबोधन अवस्था में अधिगम व्यवहार को उत्पन्न करने के लिए अनुषोचनी की व्यवस्था की जाती है।
उन्मुक्ति अवस्था में अधिगम व्यवहार (जो सीख लिये गये हैं) उनके अभ्यास के अवसर प्रदान जाते हैं। अनुबोधन तीसरी अवस्था में प्रयुक्त नहीं किये जाते।
मैथेटिक्स का निर्माण कठिन होता है, इसके लिए अभिक्रमिक में विशिष्ट योग्यता होनी चाहिए।
इसमें सीखी जाने वाली विषय-वस्तु के अन्तिम पद से शुरू करके, प्रथम पद तक पहुंचना सामान्य बालकों के लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
मैथेटिक्स की प्रमुख विशेषताएँ तथा सम्बन्धित कार्य प्रणाली (Chief Characteristics of Mathetics)
1. मैथेटिक्स प्रोग्रामिंग में अन्य अनुदेशात्मक प्रारूप की भाँति शिक्षण सामग्री के विस्तृत विश्लेषण से अधिगम प्राप्त होता है।
2. इसमें अधिगम की इकाई फ्रेम (Frame) न होकर अभ्यास या समस्या होती है।
3. इसमे अवरोही श्रृंखला (Backward or Retrogressive) सिद्धान्त का उपयोग किया जाता है।
4. अवरोही श्रृंखला के अन्तर्गत तीन मूलभूत सोपानो (प्रदर्शन अनुबोधन तथा उन्मुक्ति) का समावेशन होता है।
5. इस अभ्यास या समस्या का समाधान खोजना ही छात्रों को पुनर्बलन प्रदान करता है।
मैथेटिक्स प्रोग्राम की प्रक्रिया (Process of Mathetics Programme)
उपर्युक्त के आधार पर मैथेटिक्स प्रोग्राम की प्रक्रिया निम्न प्रकार व्यक्त की जा सकती है
1. इसमे सर्वप्रथम नैपुण्य पद की तलाश की जाती है जो प्रायः शृंखला के अन्तिम पद के रूप में होता है।
2. इसके पश्चात् प्रोग्रामर छात्रों के समक्ष निपुणता प्राप्त कराने वाले सभी पद प्रस्तुत करता है।
3. तत्पश्चात् छात्रों को नैपुण्य पद से सम्बन्धित अनुक्रिया करने के लिए आवश्यक अनुबोधन प्रदान करता है जिससे कि वे निपुणता के अन्तिम स्तर तक पहुँच सकें।
4. इसके बाद अन्तिम नैपुण्य पद तक पहुँचने से पूर्व अन्य सभी पदों को छात्रों के सामने रखा जाता है।
5. छात्रों को अनुबोधन (Prompts) दिये जाते हैं, वे अनुक्रिया करते है फिर उन्हें नैपुण्य पद का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है।
6. इसके बाद छात्रों के सम्मुख अन्तिम नैपुण्य पद से ठीक पहले के पद से भी एक पद पूर्व तक ले जाने वाले पदों को प्रस्तुत किया जाता है।
7. इस प्रकार छात्र अनुक्रिया करते रहते हैं। सबसे अन्त में पहले पद के प्रति अनुक्रिया करनी है। इस प्रकार धीरे-धीरे उल्टी तरफ से चलकर निपुणता प्राप्त की जाती है। इसे निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-
यहाँ D = छात्र द्वारा निष्पादित तथा प्रदर्शित, P= अनुबोधक, R= अनुक्रिया के लिए उन्मुक्ति।